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Wednesday, August 27, 2014

lord bhuddha

जो नित्य एवं स्थाई प्रतीत होता है, वह भी विनाशी है। जो महान प्रतीत होता है, उसका भी पतन है। जहाँ संयोग है वहाँ विनाश भी है। जहाँ जन्म है वहाँ मरण भी है। ऐसे सारस्वत सच विचारों को आत्मसात करते हुए महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की जो विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है।

Tuesday, August 26, 2014

Lord buddha story

जो नित्य एवं स्थाई प्रतीत होता है, वह भी विनाशी है। जो महान प्रतीत होता है, उसका भी पतन है। जहाँ संयोग है वहाँ विनाश भी है। जहाँ जन्म है वहाँ मरण भी है। ऐसे सारस्वत सच विचारों को आत्मसात करते हुए महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की जो विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है।

विश्व के प्रसिद्द धर्म सुधारकों एवं दार्शनिकों में अग्रणी महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाओं का विवरण अनेक बौद्ध ग्रन्थ जैसे- ललितबिस्तर, बुद्धचरित, महावस्तु एवं सुत्तनिपात से ज्ञात होता है। भगवान बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी वन में 563 ई.पू. में हुआ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी थी। महात्मा बुद्ध अर्थात सिद्धार्थ (बचपन का नाम) के जन्म के सातवें दिन माता महामाया का देहान्त हो गया था, अतः उनका पालन-पोषण उनकी मौसी व विमाता प्रजापति गौतमी ने किया था।

सिद्धार्थ बचपन से ही एकान्तप्रिय, मननशील एवं दयावान प्रवृत्ति के थे। जिस कारण आपके पिता बहुत चिन्तित रहते थे। उपाय स्वरूप सिद्धार्थ की 16वर्ष की आयु में गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा से शादी करवा दी गई। विवाह के कुछ वर्ष बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। समस्त राज्य में पुत्र जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने कहा, आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कङी और जुङ गई। यद्यपि उन्हे समस्त सुख प्राप्त थे, किन्तु शान्ति प्राप्त नही थी। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृतव्यक्ति एवं सन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की तरफ मोङ दिया। अतः एक रात पुत्र व अपनी पत्नी को सोता हुआ छोङकर गृह त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पङे।

गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ मगध की राजधानी राजगृह में अलार और उद्रक नामक दो ब्राह्मणों से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये किन्तु संतुष्टि नहीं हुई। तद्पश्चात निरंजना नदी के किनारे उरवले नामक वन में पहुँचे, जहाँ आपकी भेंट पाँच ब्राह्मण तपस्वियों से हुई। इन तपस्वियों के साथ कठोर तप किये परन्तु कोई लाभ न मिल सका। इसके पश्चात सिद्धार्थ गया(बिहार) पहुँचे, वहाँ वह एक वट वृक्ष के नीचे समाधी लगाये और प्रतिज्ञां की कि जबतक ज्ञान प्राप्त नही होगा, यहाँ से नही हटुँगा। सात दिन व सात रात समाधिस्थ रहने के उपरान्त आंठवे दिन बैशाख पूणिर्मा के दिन आपको सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। इस घटना को “सम्बोधि” कहा गया। जिस वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे “बोधि वृक्ष” तथा गया को “बोध गया” कहा जाता है।

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध सर्वप्रथम सारनाथ(बनारस के निकट) में अपने पूर्व के पाँच सन्यासी साथियों को उपदेश दिये। इन शिष्यों को “पंचवगीर्य’ कहा गया। महात्मा बुद्ध द्वारा दिये गये इन उपदेशों की घटना को ‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन’ कहा जाता है। भगवान बुद्ध कपिलवस्तु भी गये। जहाँ उनकी पत्नी,पुत्र व अनेक शाक्यवंशिय उनके शिष्य बन गये। बौद्ध धर्म के उपदेशों का संकलन ब्राह्मण शिष्यों ने त्रिपिटकों के अंर्तगत किया। त्रिपिटक संख्या में तीन हैं-
1-विनय पिटक, 2-सुत्त पिटक, 3- अभिधम्म पिटक
इनकी रचना पाली भाषा में की गई है।हिन्दू-धर्म में वेदों का जो स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान पिटकों का है।

भगवान बुद्ध के उपदेशों एवं वचनों का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा सम्राट अशोक ने किया। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर अशोक का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात करते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुँचाया। भीमराव आम्बेडकर भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

महात्मा बुद्ध आजीवन सभी नगरों में घूम-घूम कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे। भ्रमण के दौरान जब वे पावा पहुँचे, वहाँ उन्हे अतिसार रोग हो गया था। तद्पश्चात कुशीनगर गये जहाँ 483ई.पू. में बैशाख पूणिर्मा के दिन अमृत आत्मा मानव शरीर को छोङ ब्रहमाण्ड में लीन हो गई। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के उपदेश आज भी देश-विदेश में जनमानस का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। भगवान बुद्ध प्राणी हिंसा के सख्त विरोधी थे। उनका कहना था कि,
“जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।“

भगवान् बुद्ध के सुविचारों के साथ ही मैं अपनी कलम को विराम देना चाहूंगी , “हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो परछाई की तरह  ही प्रसन्नता उसका साथ कभी नहीं छोडती।“


आप सभी पाठकों का हम सह्रदय आभार व्यक्त करते हैं कि, आप लोग मेरे लेखन के प्रयास में लेख को पढकर हमारा हौसला बढाते हैं। मेरे लिये ये हर्ष का विषय है कि, आप में से कई लोग दृष्टीबाधित बच्चों के लिये कार्य करना चाहते। आप सभी सद्कार्य की कामना लिये सभ्यजनो से मेरा अनुरोध है कि, आप जहाँ भी रहते हैं वहीं आस-पास किसी जरूरतमंद की मदद कर सकते हैं। यदि आपके पास कोई दृष्टीबाधित बच्चों की संस्था है तो उन्हे शिक्षादान दे सकते हैं। आपका साथ एवं नेत्रदान का संकल्प उनके जीवन को रौशन कर सकता है।- धन्यवाद

lord ganesha mantra


“Oh! Lord (Ganesha), of huge body and curved elephant trunk, whose brilliance is equal to billions of suns, always remove all obstacles from my endeavors.”

“Salutations to Lord Ganesha who has an elephant head, who is attended by the band of his followers, who eats his favorite wood-apple and rose-apple fruits, who is the son of Goddess Uma, who is the cause of destruction of all sorrow. And I salute to his feet which are like lotus.”

Sumukha, Ekadanta, Kapila, Gajakarnaka, Lambodara, Vikata, Vighnanaasha, Ganaadhipa, Dhuumraketu, Ganaadhyaksha, Bhaalachandra, Gajaanana -
No obstacles will come in the way of one who reads or listens to these 12 names of Lord Ganesha at the beginning of education, at the time of marriage, while entering or exiting anything, during a battle or calamity.
“In order to remove all obstacles, one should meditate on (the Lord Ganesha) as wearing a white garment, as having the complexion like the moon, and having four arms and a pleasant countenance.”
“Oh God who has the mouse as his vehicle, and the sweet modhaka (rice ball) in your hand, whose ears are wide like fans, wearing the sacred thread. Oh son of Lord Shiva who is of short stature and who removes all obstacles, Lord Vinayaka, I bow at your feet.”


विघ्न हरण, मंगल करण, गणनायक गणराज |

रिद्धि सिद्धि सहित पधारजो, म्हारा पूरण करजो काज ||

 

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lord buddha mantra